मैं अंगारा तुम अगर तपन से प्यार करो तो आजाना !
मैं जैसा हूँ ,मुझे वैसा ही स्वीकार करो तो आजाना !!
# जो चना चबैना तक सीमित वो मेरा चना चबैना क्या
जो लेना देना करता हो फ़िर उससे लेना देना क्या
मेरी ही तरह अगर तुम भी व्यापार करो तो आजाना .......
# मन में आकाश भरा है पर है धरा न पावों के नीचे
मैं अनहद तक आ पहुंचा हूँ लेकिन आँखे मीचे मीचे
तुम धरती बनकर कुछ मेरा आधार करो तो आजाना ..........
# मैं ऊब चुका हूँ प्यालों से ,दम घुटने लगा सवालों से
अबतो बातें करना चाहूँ ,अपने अंतर के छालों से
तुम ओस कणों की ठंडी सी बौछार करो तो आजाना ..........
# माना तुम हारे हुए नहीं , लेकिन यह कोई जीत नहीं
मृत्यु में किसी की प्रीत नहीं , फ़िर क्यों जीवन संगीत नहीं ?
तुम ऐसे ऐसे प्रश्नों से दो चार करो तो आजाना ...............
# मैं वरदानों को दान समझ स्वीकार नहीं कर पाऊंगा
व्यापार बुद्धि से समझौता मन मार नहीं कर पाऊँगा
तुम होम अगर कर्तव्यों पर अधिकार करो तो आजाना ...........
# मैं बहुत थका हूँ इस भ्रम में , साधारण नहीं अनूठा हूँ
इसलिए अभी तक जग से क्या , ख़ुद से भी रूठा रूठा हूँ
तुम मान नहीं , मुझसे केवल मनुहार करो तो आजाना ..........
# या तो ढोल ढमाके हैं ,या फ़िर गुमसुम सन्नाटे हैं
मैं चाहे जिसके साथ रहूँ , मुझको घाटे ही घाटे हैं
तुम हौले हौले झांझर की झनकार करो तो आजाना ............
# मैं घोर यातना में बंदी , अभिशप्त प्रेत की छाया हूँ
मैं शापभृष्ट गन्धर्व कहीं से भटक यहाँ पर आया हूँ
आंसू से तर्पण कर मेरा उद्धार करो तो आजाना ............
© 2002 Lalit Mohan Trivedi All Rights Reserved
रविवार, 22 जून 2008
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12 टिप्पणियां:
Mamaaji dhanyawad. is racna ko bhejne ke liye. yeh meri un priya kavitao mein se hai jo apne likhi hai. Aisa kuchh aur lihkiya intjaar rahega. Apka Bhanja Avnish
तीसरे और चौथे पद में * करो * के स्थान पर
* बनो * आना चाहिए था।
अच्छी कविता है।
तुम ओस कणों की ठंडी सी बौछार ....
अति सुंदर्... बहुत उम्दा ...
वाह! आप तो बहुत अच्छा लिखते हैं, नियमित लिखते रहें
शुभकामनायें...
हाँ, अपने ब्लॉग का शीर्षक हिन्दी में लिखें और टिप्पणी से वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें
एक लम्बे इंतज़ार के बाद आपने ब्लॉग का आरम्भ कर ही दिया..और शुरुआत बहुत ही सुन्दर गीत से की है. बहुत ही खूबसूरत गीत है...बहुत अच्छा लगा पढ़कर!अगली रचना का इंतज़ार रहेगा...
त्रिवेदी जी
बधाई। आपका ब्लाग देखकर प्रसन्नता हुई। बहुत बढिया।
दीपक भारतदीप
अच्छी कविता है - लोखते चलें। हिन्दी चिट्टाजगत में स्वागत है।
ati uttam
shaandar as ever,aap bahut majedar aur jandar kaam ker rahe hai.aap meri post bhee dekhiye a line of literature per .choti see sahi shuruat to hui.
jawab dijiyega
bhoopendra
dekhiye ab aur kitni door tak chalna pade
mai to deepak hoon ke saari ummra hee jalna pade
taja post per kuch boliye naa?
मैं चाहे जिसके साथ रहूँ , मुझको घाटे ही घाटे हैं
तुम हौले हौले झांझर की झनकार करो तो आजाना ............
Bahut satya likh hai
मैं जैसा हूँ ,मुझे वैसा ही स्वीकार करो तो आजाना !!
bahut khoob
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