यूँ ही नहीं किसी के आगे , उसने बांह पसारी होगी !!
# नेह व्यथा से सृजन कथा तक , सब दस्तूर निराले देखे !
बच बच कर चलने वालों के , पांवों में ही छाले देखे !
जान बूझ कर जो स्वीकारी ,भूल बहुत ही प्यारी होगी !!
यूँ ही नहीं ...............
# प्यार किया है तो करने का , यह अभिमान कहाँ से आया ?
सब कुछ यहाँ लुटाया था तो , फ़िर मस्तक कैसे उग आया ?
जो चाहे प्रतिदान प्रेम में , सिर्फ़ बुद्धि व्यापारी होगी !!
यूँ ही नहीं ................
# दरिया भी सागर है माना , लेकिन कुछ हटकर बहता है !
दर्पण झूठ न बोले फ़िर भी , बांये को दांया कहता है !
तुम अभिमान जिसे समझे हो , वह शायद खुद्दारी होगी !!
यूँ ही नहीं ................
# मौन प्यार अच्छा है लेकिन , जी तो करता है कुछ गाऊँ !
घुंघरू पाँव बंधे हैं मेरे , तो झनकार कहाँ ले जाऊं !
यह थिरकन स्वीकार न की तो , ख़ुद से ही गद्दारी होगी !!
यूँ ही नहीं .............
© 2005 Lalit Mohan Trivedi All Rights Reserved
6 टिप्पणियां:
नेह व्यथा से सृजन कथा तक , सब दस्तूर निराले देखे !
बच बच कर चलने वालों के , पांवों में ही छाले देखे !
सुन्दर भाव
बहुत सुंदर गीत है....आपके सभी गीत मुझे पसंद है.....और रचनओं का इन्जार रहेगा....
बहुत सुंदर. सुंदर भाव, सुंदर अभिव्यक्ति. वाह !
दर्पण झूट न बोले फ़िर भी बाएं को दायां कहता है...
विलक्षण रचना...एक एक शब्द और भाव कमाल का है. ये एक ऐसी रचना है जो सीधे दिल में उतर जाती है बिना किसी प्रतिरोध के. बधाई
नीरज
हिन्दी ब्लॉगजगत में स्वागत है. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाऐं.
बहुत ही उम्दा पूरी रवानगी में बहता हुआ गीत लिखा है, बहुत बधाई.
दरिया भी सागर है माना , लेकिन कुछ हटकर बहता है !
दर्पण झूठ न बोले फ़िर भी , बांये को दांया कहता है !
wah
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