प्रश्न छेड़ कर्तव्य और अधिकार का !
व्यर्थ न कर देना तुम पल अभिसार का !!
# मन में कब तक व्यर्थ प्रतीक्षा लिए रहोगे
जब कोई भी नहीं आएगा द्वार तुम्हारे !
तुम्हें पता है रात कटेगी तारे गिन गिन
क्यों ख़राब करते हो फ़िर ये साँझ सकारे !
सहज आदमी होना कितना सम्मोहक है
देखो तो चोला उतार अवतार का ........................
# माना हमने संघर्षों में जीना अच्छा
बाधाओं से लड़ते रहना ही है जीवन !
झंझाओं से जूझ नाव तट तक ले जाना
जीवन में गति ,गतिमय जीवन सच है, लेकिन !
धारा के संग बहने का भी अपना सुख है ,
देखो तो आसरा छोड़ पतवार का ........................
# तुम हो जाओ मेरे विराट में लीन और ,
में तुमको पा अस्तित्व हीन होता जाऊं !
तुम झरो स्वांति की बूँद बूँद सी जीवन में ,
मैं चातक बनकर घूँट घूँट पीता जाऊं !
तथाकथित यह पाप आज तो कर ही डालें
कल खोजेंगे पंथ मुक्ति के द्वार का ........................
शनिवार, 12 जुलाई 2008
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8 टिप्पणियां:
सहज आदमी होना कितना सम्मोहक है
देखो तो चोला उतार अवतार का
bahut hi sahi baat kahi aapne..bahut umda rachna hai.
bhut badhiya.
धारा के संग बहने का भी अपना सुख है ,
देखो तो आसरा छोड़ पतवार का .
अच्छी लगी आपकी यह रचना
ललित जी
सबसे पहले तो आप का मेरे ब्लॉग पर आने और ग़ज़ल पढ़ कर पसंद करने का शुक्रिया, दूसरा शुक्रिया मुझे उस लिंक से आप के ब्लॉग तक पहुँचने का. सच कहूँ आप की अभिव्यक्ति की शाश्क्तता से अभिभूत हो गया हूँ. आप की एक नहीं प्रत्येक रचना अद्भुत है...शब्दों और भावों का ये विरल संगम बहुत कम देखने को मिलता है...झूट नहीं अगर कहूँ की मुझे आप के इस विलक्षण लेखन से इर्षा होने लगी है...माँ सरस्वती अपनी अनुकम्पा आप पर सदैव ऐसे ही बनाये रखे ये ही कामना करता हूँ.
नीरज
बहुत गहरा..
***राजीव रंजन प्रसाद
सादर नमस्कार। सुंदरतम, यथार्थ और सटीक। साधुवाद।
त्रिवेदी जी
आपकी यह रचना बहुत अच्छी लगी। इससे प्रभावित होकर कुछ पंक्तियां कहने का मन चाहा सो लिख दी। आपने बहुत बढि़या लिखा है।
दीपक भारतदीप
........................
जितना चाहोगे
उतना असहज हो जाओगे
दौड़ते हुए बहुत कुछ जुटा लोगे
अपने जीने का सामान
पर फिर उसका बोझ नहीं
उठा पाओगे
जिंदगी की गति चलती है
अपनी गति से
उसे ज्यादा तेज दौड़ने की कोशिश न करो
असहजता में जो पाया है
उसको भी नहीं भोग पाओगे
........................
आज आपके ब्लॉग पर कविता पढ़ी .बहुत अच्छी लगी : बधाई !
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