छू गई साँस इक पाँखुरी , प्राण मन गमगमाने लगे !
नैन में जबसे तुम आ बसे , स्वप्न भी झिलमिलाने लगे !!
जब से काजल डिठौना हुआ , हो गया जो भी होना हुआ !
झम झमाझम हुई देहरी , छम छमाछम बिछौना हुआ
बिन पखावज बिना पैंजनी , पाँव ख़ुद छन छनाने लगे !!
नैन में जबसे ...............
रस छलकते क्षणों का पिया , बूँद को भी नदी कर लिया !
चिलचिलाती हुई धूप का , नाम ही चाँदनी धर दिया !
आसमाँ दूर है तो रहे , पंख तो फडफडाने लगे !!
नैन में जबसे ................
जब खुले पट नहीं द्वार के , सांकलें तोड़ दीं हार के !
मान फ़िर फन पटकने लगा , पाँव छलनी थे मनुहार के !
झनझनाने लगीं बेडियाँ , और तुमको बहाने लगे !!
नैन में जबसे .....................
ले लिया जोगिया वेश है , आग लेकिन अभी शेष है !
जल चुका पंखुरी का बदन , गंध में किंतु आवेश है !
ये अलग बात है आज फ़िर , अश्रु कण छलछलाने लगे !!
नैन में जबसे .....................
जब नियति के कसाले पड़े , सूर्य के होठ काले पड़े !
पाँव मेरे जले धूप में , उनके हाथों में छाले पड़े !
जिंदगी अब न कुछ चाहिए , होश मेरे ठिकाने लगे !!
नैन में जबसे ....................
© 2002 Lalit Mohan Trivedi All Rights Reserved
गुरुवार, 7 अगस्त 2008
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
6 टिप्पणियां:
रस छलकते क्षणों का पिया , बूँद को भी नदी कर लिया !
चिलचिलाती हुई धूप का , नाम ही चाँदनी धर दिया !
आसमाँ दूर है तो रहे , पंख तो फडफडाने लगे !!
bahut pyara geet hai...har pankti sundar hai.
वाह! बहुत सुन्दर.बहुत उम्दा,बधाई.
बहुत सुन्दर!
घुघूती बासूती
ले लिया जोगिया वेश है , आग लेकिन अभी शेष है !
जल चुका पंखुरी का बदन , गंध में किंतु आवेश है !
ये अलग बात है आज फ़िर , अश्रु कण छलछलाने लगे !!
नैन में जबसे ...
बहुत खूब, ललित जी!
प्रेम मेरा पसंदीदा विषय है कविता या गीत के लिये, आपकी इस रचना ने दिल ही जीत लिया!
sundar shabd chota hai...ras se saraabor....aabhaar
एक टिप्पणी भेजें