नींद आती नहीं है ,ये क्या हो गया ?
रात जाती नहीं है, ये क्या हो गया ??
प्रेम हो या कि हो हादसा आँख अब !
छलछलाती नहीं है ,ये क्या हो गया !
अब किसी भी चरण पर कोई आस्था !
सर झुकाती नहीं है, ये क्या हो गया !!
वैसे कहने को तो रातरानी है ये !
गमगमाती नहीं है, ये क्या हो गया !!
हम ने पायल गढ़ाई ग़ज़ल बेच कर !
छनछनाती नहीं है ,ये क्या हो गया !!
मीर की हो ग़ज़ल या कि दुष्यंत की !
गुदगुदाती नहीं है ,ये क्या हो गया !!
खिलखिलाती नहीं ज़िन्दगी सब्र था !
मुस्कुराती नहीं है, ये क्या हो गया !!
अपनी तारीफ है और अपनी जवां !
थरथराती नहीं है, ये क्या हो गया !!
© 2002 Lalit Mohan Trivedi All Rights Reserved
13 टिप्पणियां:
वाह त्रिवेदी जी मजा आ गया। आपको नववर्ष की शुभकामनाएं
दीपक भारतदीप
मजा आ गया...
नववर्ष की आपको व आपके परिवारवालों को हार्दिक शुभकामना और बधाई . आपका भविष्य उज्जवल हो की कामना के साथ .
महेंद्र मिश्रा जबलपुर
सबसे पहले तो आप और आपके समस्त परिवार को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं.
बहोत ही खुबसूरत ghazal
ढेरो बधाई आपको...
अर्श
नया साल आए बन के उजाला
खुल जाए आपकी किस्मत का ताला|
चाँद तारे भी आप पर ही रौशनी डाले
हमेशा आप पे रहे मेहरबान उपरवाला ||
नूतन वर्ष मंगलमय हो |
प्रेम हो या कि हो हादसा आँख अब !
छलछलाती नहीं है ,ये क्या हो गया !
अब किसी भी चरण पर कोई आस्था !
सर झुकाती नहीं है, ये क्या हो गया !!
वैसे कहने को तो रातरानी है ये !
गमगमाती नहीं है, ये क्या हो गया !!
हम ने पायल गढ़ाई ग़ज़ल बेच कर !
छनछनाती नहीं है ,ये क्या हो गया !!
बहुत खूब भाई....शानदार ग़ज़ल...वाह.
आप को नव वर्ष की शुभकामनाएं....
नीरज
वाह क्या बात है, क्या खूब लिखा है
नयी सोच की उपज है ये ग़ज़ल
इतनी अच्छी ग़ज़ल, मेरा भी मन गया बहल, ये क्या हो रहा है.
नए साल की हार्दिक बधाई.
प्रेम हो या कि हो हादसा आँख अब !
छलछलाती नहीं है ,ये क्या हो गया !
अब किसी भी चरण पर कोई आस्था !
सर झुकाती नहीं है, ये क्या हो गया !!
वैसे कहने को तो रातरानी है ये !
गमगमाती नहीं है, ये क्या हो गया !!
हम ने पायल गढ़ाई ग़ज़ल बेच कर !
छनछनाती नहीं है ,ये क्या हो गया !!
मीर की हो ग़ज़ल या कि दुष्यंत की !
गुदगुदाती नहीं है ,ये क्या हो गया !!
kya baat hai...bahut hi badhiya. abhi tak aapke geet padhe the. lekin ghazal mein bhi aapka jawaab nahi.
इस नए साल पर हो गए चुप ये क्या होगया ,
उम्मीद का एक सूरज जागने से पहले सो गया ,ये क्या हो गया ,
बहुत खूब भाईसाहब ,पुराने अनुभवों को खूबसूरती से कलमबद्ध किया है यह तो मानना पड़ेगा ,फ़िर से कबूल
आपका ही भूपेन्द्र ,रेवा म्प ,
हम ने पायल गढ़ाई ग़ज़ल बेच कर !
छनछनाती नहीं है ,ये क्या हो गया !!
भाई बहुत खूब। एक पुराना गीत याद आगया... कोई सागर दिल को बहलाता नहीं..
प्रेम हो या कि हो हादसा आँख अब !
छलछलाती नहीं है ,ये क्या हो गया !
अब किसी भी चरण पर कोई आस्था !
सर झुकाती नहीं है, ये क्या हो गया !!
bahut khoob
हम ने पायल गढ़ाई ग़ज़ल बेच कर !
छनछनाती नहीं है ,ये क्या हो गया !!
ek nayaab aur dil-fareb ghazal...
ek-ek sher aapki saaf-goi aur zahaanat ki tarjumaani kar ahaa hai
mubarakbaad qubool farmaaeiN.
---MUFLIS---
bahut hi khoobsoorat gazal.
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