बुधवार, 1 अप्रैल 2009

चितवन .........( गीत )

तुम्हारी रसवंती चितवन !
और मदिर हो गई चाँदनी घूंघट से छन छन !!

झरे मकरंद ,छंद, सिंगार ,
अलस ,मद,मान और मनुहार
हो गया चकाचौंध दरपन !
तुम्हारी .................

चुभी तो नयन नीर भर गई
झुकी तो पीर पीर कर गई
उठी तो तार तार था मन
तुम्हारी ................

सजीली ज्यों काशी की भोर
हठीली हुई बनी चित्तौर
और गीली तो बृन्दावन
तुम्हारी ..................

लजीली हुई बनीं निर्झर
पनीली तो अथाह सागर
और सपनीली तो मधुवन
तुम्हारी ...................

हुआ क्या मुझे पहुँच मझधार ,
कि लगने लगी बोझ पतवार
भँवर में इतना आकर्षण ?
तुम्हारी ..................

कभी झिलमिल ,झिलमिल ,झिलमिल
कभी खिलखिल, खिलखिल, खिलखिल
कभी फ़िर छूम ,छनन ,छन छन
तुम्हारी .......................



© 1992 Mohan Trivedi All Rights Reserved

13 टिप्‍पणियां:

paramjitbali ने कहा…

बहुत सुन्दर गीत लिखा है।बधाई स्वीकारें।

कंचन सिंह चौहान ने कहा…

YuN der se aana aur chha jaana khoob andaz ha aap ka

सजीली ज्यों काशी की भोर
हठीली हुई बनी चित्तौर
और गीली तो बृन्दावन

हुआ क्या मुझे पहुँच मझधार ,
कि लगने लगी बोझ पतवार
भँवर में इतना आकर्षण ?

itana achchha mat likhiye ki ham jaiso ko apane par sharma aane lage....! kya kahoo.n...! Man jhoom utha.

पारुल "पुखराज" ने कहा…

झुकी तो पीर पीर कर गई
उठी तो तार तार था मन
......
भँवर में इतना आकर्षण ?..sundar..bahut sundar

daanish ने कहा…

एक बदली हुई
अनजानी-सी परिभाषा को लपेटे hue
लिखी जा रहीं कविताओं की भीड़ में
सहसा एक मन-भावन , रोचक और सच्चा गीत पढने को मिला
यूं लगा जैसे खिले-खिले से रजनीगंधा के फूलों से
आलिंगन हो गया हो ....
आपके सार्थक लेखन को नमन करता हूँ
---मुफलिस---

pallavi trivedi ने कहा…

geet likhne mein aapka koi saani nahi hai..bahut hi sundar.

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

तुम्हारी रसवंती चितवन !
और मदिर हो गई चाँदनी घूंघट से छन छन !!

बहुत सुन्दर ....!!

झुकी तो पीर पीर कर गई
उठी तो तार तार था मन
......
भँवर में इतना आकर्षण ....

waah....!!

रश्मि प्रभा... ने कहा…

waah,bahut hi bhawbheeni rachna......

dpkraj ने कहा…

क्या बात है? आपका हर गीत दिल को छू जाता है।
दीपक भारतदीप

seema gupta ने कहा…

हुआ क्या मुझे पहुँच मझधार ,
कि लगने लगी बोझ पतवार
भँवर में इतना आकर्षण ?
तुम्हारी ..................

" सुंदर भाव और प्यारा भरा गीत.सोंदर्य से भरा हुआ ...मन को भा गया.."

Regards

shama ने कहा…

Maine is rachnaako padha to subah tha, lekin tippnaa kar payee..kaash ise surume piro koyi gaake suna sake...behad sundar geet banega! Aap agar manch kee diniyaase nigadit hain, to ye zaroor shaky hoga...

Itne sundar geeteke liye, gar kahun, ki, Rafi, kishor,Mukesh, yaa Manna de se kam naa ho koyi, to galat nahee hogaa...in aawazonkaa hai koyi saanee..?
Purush gayakon meto phirbhi chand hain, jinhen sun leneme "takleef" nahee hoti, lekin gayikaaon me mujhe lagtaa hai, ek vilakshan khaalipan aa gayaa hai...alfaaz, aawaaz aur dhun kaa trivenee sangam...kaan taras gaye !

Aapko bata doon( yaa shayad aapne mere lekhanme kaheen padh liya hoga), ki maine movie making kaa course kiya hai..chahtee hun, ki arthpoorn film nirmaan,zindageeme kamse kam ek baar to kar sakun..aur sabse adhik ichha hai..aatankaa vishay leke kuchh nirmaan ho...aur use aazaadige poorvse leke aajtak ke har shaheed ke naam kar dun.."artharjan"ki nahee chahat, is vishay ko leke..lekin kuchh "arthpoorn" nirmaan kar use " arpan" kar denekee vilakshan chahat hai..

Log mujhe bewaqoof kehte hain, ki commercial cinemaake alawa kuchh aur nahee banana chahiye...lekin aise wishaype artharjan to hohee nahee saktaa...vishayko kahaneeme dhaal, logon tak pohchayaa saktaa hai, lekin, ek hadse zyada artharjanki ummeed to lagta hai, jaise shaheedonke kafan bech kamayee karnekee chah ho...
Samay mile to "kahanee" blog dekehen..
Aur gar e-mail dwara mujhe apna postal address den,to apna ek kathasangrah aapko bhej doongi..gar pata deneme aitraaz naa ho to..

ललितमोहन त्रिवेदी ने कहा…

thanks for such appriciable complements .

Unknown ने कहा…
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
Abha Khetarpal ने कहा…

bahut sunder Lalit ji...