शनिवार, 12 सितंबर 2009

है बिलाशक ये दरिया चमन के लिए .....( ग़ज़ल )

ग़ज़ल
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है बिलाशक ये दरिया ,चमन के लिए !
चन्द बूँदें तो रखलो तपन के लिए !!

बदमिज़ाजी न बादल की सह पाऊंगा !
मुझको मंज़ूर है प्यास मन के लिए !!

वो तगाफुल नहीं मुझसे कर पाएंगे !
चाहिए आहुती भी हवन के लिए !!

याद रखता है इतिहास केवल उन्हैं !
जो कफन ओढ़ पाते हैं फ़न के लिए !!

हम भरे जा रहे पृष्ठ पर पृष्ठ हैं !
ढाई आखर बहुत थे सृजन के लिये !!

घर जला है तो फ़िर कुछ जला ही नहीं !
' पर ' जलाए हैं हमने गगन के लिए !!

लाख सर हों तुम्हारे चरण पर मगर !
चाहिए एक कांधा थकन के लिए !!

सर उठाना तुम्हारा बहुत खूब पर !
एक देहरी तो रख्खो नमन के लिए !!


( तगाफुल --उपेक्षा,उदासीनता )


© 2008 lalit mohan trivedi All Rights Reserved

20 टिप्‍पणियां:

"अर्श" ने कहा…

लाख सर हों तुम्हारे चरण पर मगर !
चाहिए एक कांधा थकन के लिए !!
आपकी गज़ल्गोई का हमेशा ही सही मुरीद रहा हूँ... सारी गज़लें ही पसंद है आपकी... और आज की ग़ज़ल तो और भी कामयाब निकली.. इस ऊपर के शे'र में बारे में कुछ कहने के लिए मेरे पास ऐसा कोई शब्दकोष नहीं है सर .. बहुत बहुत बधाई और आभार... सलाम..

अर्श

shama ने कहा…

Aapkee rachnaon pe tippanee denekee qabiliyat nahee rakhtee...Arsh ji se sahmat hun..

http://shamasansmaran.blogspot.com

http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com

http://baagwaanee-thelightbyalonelypath.blogspot.com

Vipin Behari Goyal ने कहा…

घर जला है तो फ़िर कुछ जला ही नहीं !
' पर ' जलाए हैं हमने गगन के लिए !!
बहुत खूब कहा आपने

संजय तिवारी ने कहा…

आपकी लेखनी को मेरा नमन स्वीकार करें.

dpkraj ने कहा…

क्या बात है त्रिवेदी जी! वाह!
दीपक भारतदीप

पारुल "पुखराज" ने कहा…

लाख सर हों तुम्हारे चरण पर मगर !
चाहिए एक कांधा थकन के लिए !!

सर उठाना तुम्हारा बहुत खूब पर !
एक देहरी तो रख्खो नमन के लिए !!..
bahut bahut sundar

daanish ने कहा…

हम भरे जा रहे पृष्ठ पर पृष्ठ हैं !
ढाई आखर बहुत थे सृजन के लिये !!

वाह , ललित जी !!
जिस बात को किसी दीवान में भी कह पाना
न-मुमकिन-सा लगता है , उसे आपने एक नायाब शेर में ही कह डाला
एक कामयाब ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकारें .

"ये 'ललित' राज़ है आपकी सोच का
और कया चाहिए इk सुखन के लिए"

---मुफलिस---

kshama ने कहा…

शमा से सहमत हूँ ...इतनी क़ाबिलियत नही कि , कुछ कहूँ ...गज़ब ले है ...कहीँ भी सुर या ताल के लिए शब्दों की ज़ोर ज़बरदस्ती या अतिरेक नही ...! कोई आडम्बर नही...सीधे एक दिल से निकल दूसरे दिल में घर कर लेती है!

कंचन सिंह चौहान ने कहा…

हम भरे जा रहे पृष्ठ पर पृष्ठ हैं !
ढाई आखर बहुत थे सृजन के लिये !!

घर जला है तो फ़िर कुछ जला ही नहीं !
' पर ' जलाए हैं हमने गगन के लिए !!

लाख सर हों तुम्हारे चरण पर मगर !
चाहिए एक कांधा थकन के लिए !!

सर उठाना तुम्हारा बहुत खूब पर !
एक देहरी तो रख्खो नमन के लिए !!


ये अंतिम चार शेर लाज़वाब थे...कल से टिप्पणी देना चाह रही हूँ मगर नेट साथ नही दे रहजा था...!
आप जब भी लिखते हैं बेतरीन लिखते हैं..! कम पर हिट..! ग़ोया आप न हुए आमिर खान हो गये...!
प्रणाम आपको..!

रंजना ने कहा…

क्या कहूँ ललितमोहन जी...अव्वल तो हर शेर को कई कई बार पढना पड़ा क्योंकि उसकी सुन्दरता ऐसे बांधे ले रही थी कि आगे बढ़ने ही नहीं दे रही थी और ढेर सारा दाद बटोर जब आगे बढने दिया भी उसने तो अंत तक आते आते अनिर्णीत सी स्थिति बन गयी कि किस एक शेर को चुनकर उसे सिरमौर कहूँ......

वाह वाह वाह !!!! लाजवाब लिखा है आपने...लाजवाब !!!!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

ललित मोहन जी
आपकी लाजवाब ग़ज़ल काफी इंतज़ार के बाद आयी मगर आयी तो धमाल आयी हर शेर यथार्थ, वाजिब, सामाजिक हालत का सजीव चित्रं करता हुवा है ....... किसी भी एक शेर को चुनना मेरे बस की बात नहीं .. पूरी ग़ज़ल बेमिसाल है ............

Vinu Ek Bindu ने कहा…

ललित जी
सादर नमस्कार..
मैं ग़ज़ल कि कोई खास समझ तो नहीं रखता पर इतना अवश्य कहूँगा कि आपकी गजल एक
अलग तरह का अंदाज लिए रहती है..आपकी ग़ज़ल अपने सुंदर ठेट देहाती लहजे को समेटे बेहद मासूमियत के साथ सीधे आ मन के चौबारे मैं बैठ जाती है.. ग़ज़ल का ये बेहद पुरकशिश अंदाज़ वाकई कबीले तारीफ है..और जो आखिरी शेर आपने कहा है.. वो अपने आप मैं एक अद्भुत सत्य समेटे हुए है.. आपकी कलम से ऐसे सुंदर मोती झरते रहे यही शुभकामनाये है मेरी

संजीव गौतम ने कहा…

बिलाशक!!!!!! बेहतरी....न ग़ज़ल. चार दिन से सोच रहा हूं क्या लिखूं लेकिन कुछ बन ही नहीं पा रहा.
अविगत गत कछु कहत न आवै वाली स्थिति है.

गौतम राजऋषि ने कहा…

विलंब से आ रहा हूँ त्रिवेदी जी, क्षमाप्रार्थी हूं...

कुछ नायाब काफ़िये लिये हुये आपकी ग़ज़ल---उफ़्फ़्फ़्फ़ !!!

बादलों की बदमिज़ाजी, कफ़न को फ़न के लिये ओढ़ने की बाजिगरी, और फिर वो लाजवाब शेर जिसके बारे में मुफ़लिस जी ने सब कह दिया "ढाई आखर बहुत थे सृजन के लिये"...वाह!!!

और आखिरी शेर "एक देहरी तो रक्खो नमन के लिये" पे हम बिछ गये नमन हेतु इस अद्‍भुत शायर के सम्मान में।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

लाख सर हों तुम्हारे चरण पर मगर !
चाहिए एक कांधा थकन के लिए....

आज एक शेर जी मुझे बहुत अच्छा लगा छु रहा हूँ .......... वैसे जैसा नेने पहले कहा था ....... किसी एक शेर को चुनना आसान नहीं इस लाजवाब ग़ज़ल में .....नवरात्रि की बहुत बहुत शुभकामनाएं ....

नीरज गोस्वामी ने कहा…

हम भरे जा रहे पृष्ठ पर पृष्ठ हैं !
ढाई आखर बहुत थे सृजन के लिये !!

लाख सर हों तुम्हारे चरण पर मगर !
चाहिए एक कांधा थकन के लिए !!

बेहद असरदार और खूबसूरत शेरों से सजी आपकी ये ग़ज़ल लाजवाब है...मुझे अफ़सोस है आपकी बज्म में देर से पहुँचने का लेकिन यहाँ आना सार्थक हो गया...आपके लेखन में एक खास बात है जो पढने वाले को वाह करने पर मजबूर कर देती है...वाह...
नीरज

रश्मि प्रभा... ने कहा…

बदमिज़ाजी न बादल की सह पाऊंगा !
मुझको मंज़ूर है प्यास मन के लिए !!ehsaas ke is charan ki ibadat sab karte hain

Archana Gangwar ने कहा…

lalit mohan ji ....

aapki rachnaao mein ek jadu gari se hai

याद रखता है इतिहास केवल उन्हैं !
जो कफन ओढ़ पाते हैं फ़न के लिए !!

हम भरे जा रहे पृष्ठ पर पृष्ठ हैं !
ढाई आखर बहुत थे सृजन के लिये !!

her line ke ishare mein
parvat se uchahi aur samudra se gaherai hai.......

सर उठाना तुम्हारा बहुत खूब पर !
एक देहरी तो रख्खो नमन के लिए !!

bahut khoob baat kahi hai

"अर्श" ने कहा…

दिवाली की समस्त शुभकामनाएं आपको तथा आपके पुरे परिवार को हमारे तरफ से ....


अर्श

Yogesh Luthra ने कहा…

superb thought sir ji u r one of my fav now & i could not stop my srlf to follow you.

लाख सर हों तुम्हारे चरण पर मगर !
चाहिए एक कांधा थकन के लिए !!

kya khyal hain kya soch hain kya gehrai hain wah ustad wah