मंगलवार, 16 दिसंबर 2008

उपालंभ ( उलाहना )............गीत

यह गीत उस उम्र का है जब किसी की राई जैसी उपेक्षा भी पर्वत से बड़ी महसूस होती है !विदा के क्षणों में आँखों का न डबडबाना भी फांस बनकर आंसने लगता है ! कच्चेपन का पक्का गीत .......

यदि तेरे नत नयनों में भर आता नीर नमन का !

तो इतना एहसास न होता एकाकी जीवन का !!

अचक अचानक टूट गए क्यों अमर नेह के नाते

छोड़ गए क्यों गीत अधूरे अधरों पर लहराते

सागर की अनंत गहरे पर अभिमान न करते

लग जाता अनुमान कहीं यदि लहरों की थिरकन का !

तो इतना एहसास..........

देखी थी अव्यक्त वेदना पायल की रुनझुन में

सौ सौ नमन प्रीत के देखे थे प्यासी चितवन में

यदि प्रणाम तक ही सीमित रह जाती अंजलि मेरी

तो मन्दिर उपहास न करता पाषाणी पूजन का !

तो इतना एहसास ...........

कब अभीष्ट थी अरुण कपोलों पर वसंत की लाली ?

कब इच्छित थी मादक नयनों से छलकी मधु प्याली ?

सौरभमय केसर क्यारी की भी तो चाह नहीं थी ,

एक सुमन ही काफ़ी था इस मन को अभिनन्दन का !

तो इतना एहसास ...............

कब कब बता शलभ ने जल कर दोष दिया बाती को ?

मृग ने बता कभी कोसा है कस्तूरी थाती को ?

उपालंभ अब हम ही क्या जा उन्हें सुनाएँ जिनको ,

आकृति का विक्रतावर्तन भी लगा दोष दर्पण का !

तो इतना एहसास ..............

7 टिप्‍पणियां:

महेन्द्र मिश्र ने कहा…

कच्चेपन का पक्का गीत ...

bahut sundar abhivyakti .likhate rahiye. dhanyawad.

"अर्श" ने कहा…

यदि तेरे नत नयनों में भर आता नीर नमन का ! तो इतना एहसास न होता एकाकी जीवन का !!

बहोत ही खुबसूरत लिखा है आपने बेहद उम्दा ... ढेरो बधाई स्वीकारें....


अर्श

पारुल "पुखराज" ने कहा…

यदि प्रणाम तक ही सीमित रह जाती अंजलि मेरी ..bahut dino baad padha aapko..aabhaar

siddheshwar singh ने कहा…

बहुत अच्छा! बहुत लंबे अंतराल के बाद कुछ प्रस्तुत किया आपने!

कंचन सिंह चौहान ने कहा…

अचक अचानक टूट गए क्यों अमर नेह के नाते छोड़ गए क्यों गीत अधूरे अधरों पर लहराते सागर की अनंत गहरे पर अभिमान न करते लग जाता अनुमान कहीं यदि लहरों की थिरकन का !

प्यासी चितवन में यदि प्रणाम तक ही सीमित रह जाती अंजलि मेरी तो मन्दिर उपहास न करता पाषाणी पूजन का !

बहुत खूब....! जीवन के कच्चेपन के पक्के रंग कभी नही उतरते...!

Dileepraaj Nagpal ने कहा…

देखी थी अव्यक्त वेदना पायल की रुनझुन में

सौ सौ नमन प्रीत के देखे थे प्यासी चितवन में

यदि प्रणाम तक ही सीमित रह जाती अंजलि मेरी

तो मन्दिर उपहास न करता पाषाणी पूजन का !

Kya khob kaha Aapne...

Archana Gangwar ने कहा…

सौ सौ नमन प्रीत के देखे थे प्यासी चितवन

.....bahut hi khoobsorat ....sagar ke kinare baith ker bhi uski sheetalta ko mahsoos kiya ja sakta hai....kuch aisa hi anubhav hota hai in lafzo ki gaherai ko....