ग़ज़ल ..........( भूली बिसरी .....)
ढोते ढोते उजले चेहरे, हमने काटी बहुत उमर !
अब तो एक गुनाह करेंगे ,पछता लेंगे जीवन भर !!
वो रेशम से पश्मों वाला, था तो सचमुच जादूगर !
मोर पंख से काट ले गया , वो मेरे लोहे के पर !!
उसको अगर देखना हो तो , आंखों से कुछ दूर रखो !
कुछ भी नहीं दिखाई देगा , आंखों में पड़ गया अगर !!
प्यास तुम्हारी तो पोखर के , पानी से ही बुझ जाती !
किसने कहा तुम्हें चलने को ,ये पनघट की कठिन डगर !!
ज्ञान कमाया जो रट रट कर , पुण्य कमाए जो डरकर !
उसकी एक हँसी के आगे ,वे सबके सब न्यौछावर !!
सिर्फ़ बहाने खोज रहा है , पर्वत से टकराने के !
बादल भरा हुआ बैठा है , हो जाने को झर झर झर !!
और भटकने दो मरुथल में , और चटखने दो तालू !
गहरी तृप्ति तभी तो होगी , गहरी होगी प्यास अगर !!
© 1992 Lalit Mohan Trivedi All Rights Reserved
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22 टिप्पणियां:
ललित मोहन जी , नमस्कार !
एक अरसे बाद आपको पढने का इत्तेफ़ाक़ हुआ .
आप तो खुद ही एक जादूगर हैं ...
लफ्ज़-लफ्ज़ में इतनी जान डाल देते हैं कि
पढने वाला खुद जी उठता है
और...इस कामयाब ग़ज़ल के लिया भी मुबारकबाद कुबूल फरमाएं . . . .
"हर मिसरे में मन ki बातें
खुद कहते हैं शेर सभी ,
रूह तलक आराम मिला है
आपकी ये रचना पढ़ कर "
---मुफलिस---
"वो रेशम से पश्मों वाला, था तो सचमुच जादूगर
मोर पंख से काट ले गया , वो मेरे लोहे के पर "
इस शेर पर हम बिछ गये सर!...अहा!
और ये मिस्रा "बादल भरा हुआ बैठा है , हो जाने को झर झर झर " तो लाजवाब है।
वो रेशम से पश्मों वाला, था तो सचमुच जादूगर
मोर पंख से काट ले गया , वो मेरे लोहे के पर
लम्बे समय बात कुछ लिखही आपने पर लाजवाब............. दिल से वाह वाह निकलने वाला कहा है .......... खूबसूरत ग़ज़ल और ये शेर ...... बस जान ले गया लाजवाब है
वो रेशम से पश्मों वाला, था तो सचमुच जादूगर
मोर पंख से काट ले गया , वो मेरे लोहे के पर "
beautiful..morpankh..se kaat le gayaa...badi meethi baat hai ye..
वाह ! वाह ! वाह !.....लाजवाब !!!
प्रत्येक पंक्ति मन बाँध गयी......वाह !! आपके इस सुन्दर लेखन को नमन.....
ऐसे ही लिखते रहें ...मेरी अनंत शुभकामनायें....
दादा प्रणाम
अहा! वाह कहने के लिये शब्द ही नहीं मिल रहे. रोज़ आपके ब्लाग को देखता हूं जिस दिन नई रचना आती है वो दिन सार्थक हो जाता है.
"वो रेशम से पश्मों वाला, था तो सचमुच जादूगर
मोर पंख से काट ले गया , वो मेरे लोहे के पर "
ये शेर तो अद्भुत है खुद ही देखिये सबको कैसे पकड रहा है. जानता हूं अच्छी चीज़ रोज-रोज नहीं मिलती लेकिन इंतज़ार तो रोज ही रहता है.
बहुत दिन बाद आपकी गजल पढने को मिली
आप बहुत सुन्दर गजल लिखते हैं
कितनी ही बार पढ़ चुकी हूँ इस गज़ल को.. रोज आती हूँ ..सोचती हूँ कि आज कुछ प्रतिक्रिया दूँगी और फिर चली जाती हूँ..! लगता है शब्दों में बाँध कर इसकी प्रशंसा को छोटा कर दूँगी...! बस नमन..! आप जब लिखते हैं सर्वोत्ततम होता है। और क्या कहूँ...!
Aap shabdon ke jadugar hai
Lalit ji
ek ek sher ki tarif karne ka man karta hai
dhote dhote ujle chehre........ wah kya baat kahi hai ab to ek gunaah karenge ........ bahut khoob
gazal shuru karte se hi aap bus man jeet lete ho
aankho mein padh gaya agar wahhhhhhh wahhhhhh
pokhar se hi bhujh jaati wahhhhh wahhhhhhhh
Aap to ustaad ho
LALIT MOHAN JI NAMASKAAR,
WAKAI SHABDON KE ASAL JAADUGAR TO AAP HI HAI... KYA KHUBSHRAT SHE'R KAHEN HAI AAPNE HAR SHE'R DAAD KE HAD SE UPAR.... WAKAI KAMAAL KI SHAYARI KA MUJAYARA MILAA AAPKE BLOG PE ... MUDDATON BAAD AAPKE BLOG PE AANA HUA HAI... HAR BAARIK NAZAR KO LIKHA HAI AAPNE ... BAHOT SUDAR..DHERO BADHAAYEE AUR SHUBHKAAMANAAYEN...
ARSH
AAPNE JIS TARAH MERI PICHHALI GAZAL PE HAUSALAA AFJAAYEE KI HAI WO MERE LIYE SAUBHAGYA KI TARAH HAI... GAUTAM JI KE BAHAANE HI AAPSE MULAAKAT HO GAYEE YE MERE LIYE KAM GAURAV KI BAAT NAHI HAI... AAPKO MERI AAWAZ PASAND AAYEE ISKE LIYE DIL SE SHUKRAGUJAAR HUN... AAPSE MULAAKAT KE LIYE GAUTAM JI KO BHI BADHAAYEE DETA HUN AABHAAR AAPKA ..
ARSH
kafi dino baad padhne ko mila......bahut achhi jadugari dikhaai aapne
बादल भरा हुआ बैठा है ,
हो जाने को झर झर झर...
...
aur ye...
उसको अगर देखना हो तो , आंखों से कुछ दूर रखो !
कुछ भी नहीं दिखाई देगा , आंखों में पड़ गया अगर !!
bahut khoob !!
badhai...
ढोते ढोते उजले चेहरे हमने काटी एक उम्र ...अब तो एक गुनाह करेंगे पछता लेंगे जीवन भर ....जीवन में कभी कभी आदर्शों का पालन करते करते एक समय ऐसा भी आता है जब ये आदर्श बोझ लगने लग जाते हैं ....आपकी कही गयी ये पंक्तिया इसी तरफ इशारा कर रही हैं शायद ...ललित जी पहली बार आपका ब्लॉग पढने का मौका मिला और सच इतनी यथार्थवादी कविता को किन शब्दों में बयां करूँ , समझ नहीं आता ....सचमुच कलम की जादूगरी आती है आपको ....
बेहतरीन गज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें।
"...गहरी प्यास होगी ..."..पता नही कितनी सदियाँ प्यासी गुज़र गयीं ..या तो प्यास गहरी नही हुई , या साक़ी को महसूस नही हुआ ...बेखबर, हमारे सामने से गुज़र गया..और हम खाली जाम लिए तकते रही..कि,कभी नज़रे इनायत हो..
ललित जी ,
कुछ ग़लत फ़हमी है ..मै क्षमा हूँ ...आपकी टिप्पणी में 'शमा ' लिखा गया है ! जानती ,हूँ ,कि , उनके भी ब्लॉग हैं ..लेकिन ये टिप्पणी मैंने दी थी ..! गुस्ताखी के लिए माफ़ करें ..!
अन्य पाठक असमंजस में न पड़ जायें ,इसलिए आपकी टिप्पणी हटा दी है ...चाहूँगी कि , आप जैसा माहिर कवि /लेखक मेरे ब्लॉग पे ज़रूर टिप्पणी करे ..क्या ये तकलीफ आपको दोबारा दे सकती हूँ ?
सादर
क्षमा
" बिखरे सितारे " पढ़के comment किया आपने ...बेहद शुक्र गुज़ार हूँ !
आते रहें ...और रहनुमाई करते रहें ...उम्मीद रखूँगी ,कि , ये सिलसिला जारी रहेगा !
शमा जी को जानती हूँ ..पढ़ती भी हूँ ..बहु आयामी हैं ...पाक कला , बागवानी , फाइबर आर्ट से लेके , कई विषयों पे लिखती रहती हैं ..
http://shama-shamaneeraj-eksawalblogspotcom.blogspot.com
Lalit ji,ye sanajik sarokar ko madde nazar rakhte hue ,naya blog shuru kiya hai..gar aap apnee bahumooly pippanee denge to badee hausla afzaayee hogi...
http://shamasansmaran.blogspot.com
http://lelilekh.blogspot.com
http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com
http://fiberart-thelightbyalonelypath.blogspot.com
http://shama-kahanee.blogspot.com
http://baagwaanee-thelightbyalonelypath.blogspot.com
(Baagwaanee' blogpe, baagwaanee se jude kuchh sansmaran bhee hain,balki, maaloomaat sansmarnon ke saath judee huee hai!..shayad aapko padhna achha lage!)
huzoor namaskaar !
aapki nayi rachnaa ka intzaar hai
be-sabri se . . .
---MUFLIS---
उसको अगर देखना हो तो , आंखों से कुछ दूर रखो !
कुछ भी नहीं दिखाई देगा , आंखों में पड़ गया अग
aapko perna man ko khoobsorat tohfa dene jaisa hai.....
aajkal more pankh se hi lohe ke per kat rahe hai.....
bahut bare nishane per baat kahi hai aapne .....
bahut saare taale aur chakisi ke baad bhi komal hatiyaaro se hamare vichaoo tak ko palat diya jata hai....
bahut khoob
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