बुधवार, 14 अक्तूबर 2009

टूट पायेंगे नहीं पत्थर ज़रा सी चोट से .........( गीत )

टूट पायेंगे नहीं पत्थर, ज़रा सी चोट से !
ये उड़ाने ही पड़ेंगे, भूमिगत विस्फोट से !!


जो ' विचारों ' का मसीहा था 'बिचारा ' हो गया है !
जिसको होना था भँवर ,वो ही किनारा हो गया है !
हम धरा को कोसते हैं, अंकुरण देती नहीं ,
क्यों नहीं कहते कि ये बादल नकारा हो गया है !

यदि ज़मीं को खोदकर पानी निकालोगे नहीं ,
छीन लेगा तो ये शबनम भी तुम्हारे होठ से !!
ये उड़ाने ही ..........................................


है महाभारत मगर अब कृष्ण भी खाली नहीं है !
और अब गाण्डीव में भी बात कल वाली नहीं है !
द्रौपदी ने केश तो खोले हैं पर सहमी हुई है ,
भीम में आक्रोश तो है किंतु बलशाली नहीं है !

भीष्म भी अन्याय का ही साथ देने तुल गए, तब
सामने करलो शिखण्डी , बाण मारो ओट से !!
ये उड़ाने ही ...........................................

22 टिप्‍पणियां:

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

भीष्म भी अन्याय का ही साथ देने तुल गए, तो
सामने करलो शिखण्डी , बाण मारो ओट से !!
बहुत सुन्दर आभार

M VERMA ने कहा…

द्रौपदी ने केश तो खोले हैं पर सहमी हुई है ,
भीम में आक्रोश तो है किंतु बलशाली नहीं है !
सहमी हुई द्रोपदी और बलहीन भीम -- वाह क्या बात है.
बहुत सुन्दर

समयचक्र ने कहा…

भाई गजब के अल्फाज... बधाई. दीपावली की हार्दिक शुभकामना के साथ ....

डा.अरविन्द चतुर्वेदी Dr.Arvind Chaturvedi ने कहा…

मेरी एक गज़ल से :

कुछ चोट खा के और निखर जायेगा पत्थर
मेहनत करो तो बुत सा संवर जायेगा पत्थर

शेष पूरा गीत मन को छू गया.

http://bhaarateeyam.blogspot.com

डा.अरविन्द चतुर्वेदी Dr.Arvind Chaturvedi ने कहा…

मेरी एक गज़ल से :

कुछ चोट खा के और निखर जायेगा पत्थर
मेहनत करो तो बुत सा संवर जायेगा पत्थर

शेष पूरा गीत मन को छू गया.

http://bhaarateeyam.blogspot.com

siddheshwar singh ने कहा…

एक लम्बे अंतराल के बाद आज नई पोस्ट के साथ अवतरित हुए हैं ललित जी.आप विचारों को छंद में बखूबी साध लेने का हुनर रखते हैं.

यदि ज़मीं को खोदकर पानी निकालोगे नहीं ,
छीन लेगा तो ये शबनम भी तुम्हारे होठ से.

कविता शबनम और जीवन में नमी को बचाने का काम करती रहे !

मैथिली गुप्त ने कहा…

वाह ललित मोहन जी

Udan Tashtari ने कहा…

बेहतरीण गीत!!

संजीव गौतम ने कहा…

सबसे पहले तो दीपोत्सव की कोटि-कोटि शुभकामनाएं
बहुत अच्छा गीत है. सकेतों में जो समाधान आपने प्रस्तुत किया है लाजवाब है. यही कवि की लेखनी की ताक़त है. एक बात और मुखडा में शेर का भी सौन्दर्य है. अच्छा हो इस पर ग़ज़ल भी लिखें.

vandana gupta ने कहा…

bahut hi gahan likha hai...........aaj ke sach ko aaina dikha diya..........behtreen

"अर्श" ने कहा…

सर आपके हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया .. मेरे लिए उत्सव के माहौल में उपहार की तरह है ये तो ... और ऊपर से ये खुबसूरत गीत .. जिसमे हर शब्द मोटीवाटिंग है... बहुत बहुत बधाई आपको


अर्श

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सच मुच अब ओट से बाण मारने का वक़्त आ गया है ........... छल का जवाब छल से देना चाहिए ......... सुन्दर गीत है .....

गौतम राजऋषि ने कहा…

ललित जी, हमारी तो क्या हैसियत कि तारीफ़ में कुछ कहें भी हम। लेकिन गीत का गज़ब का तेवर और अद्‍भुत लय-प्रवाह है...मैं तो पढ़ना शुरू करते ही इसे "अपनी आजादी को हम हरगिज मिटा सकते नहीं" की धुन पर गाने लगा।

दोनों ही बन बेमिसाल हैं, करारी चोट करते हुये और हमें कवि की पहुँच और कवि के शिल्प पे नत-मस्तक कराते हुये।

कंचन सिंह चौहान ने कहा…

अरे...! ये पोस्ट मुझसे छूट कैसे गयी...??? शायद कानपुर गई थी तब की है...! अब कुछ कहने का मन नही होता आपकी पोस्ट पर...! लगता है प्रशंसा के सारे शब्द पुराने हो गये...! मगर इस पंक्ति पर बिना वाह किये रह भी तो नही पा रही हूँ...!!!

हम धरा को कोसते हैं, अंकुरण देती नहीं ,
क्यों नहीं कहते कि ये बादल नकारा हो गया है !

Rajeysha ने कहा…

द्रौपदी ने केश तो खोले हैं पर सहमी हुई है ,
भीम में आक्रोश तो है किंतु बलशाली नहीं है !
;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;

ये अपने देश की व्‍यथा तो नहीं।

रंजना ने कहा…

वाह !! वाह ! वाह ! रचना सौन्दर्य और भाव ने तो बस बाँध ही लिया....

हर पंक्ति सार्थक और समीचीन.....बहुत ही सुन्दर रचना !! पढ़कर आनंद आ गया !! आभार ....

डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह ने कहा…

सचमुच कलम में धार है ये मानता हूँ फिर ,अपनों में छपे सत्य को पहचानता हूँ फिर ,इतना गजब लिखा कि मन फिर कह उठा है वाह,यह ही अदा है आपकी ये जानता हूँ फिर
अत्यंत सुंदर कविता ,नए सन्दर्भों से जुड़े
बहुत बहुत बधाइयाँ
भूपेन्द्र

shama ने कहा…

Zabardast geet hai..! Kaash ise sur aur lay me sun patee! Geet kee tarah hee tez raftaar dhun!

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(Baagwaanee blog bhi sansmaranatmak hai! Bade dinon se aapko apne blog pe nahee dekha!)

संजीव गौतम ने कहा…

मैं 19 और 20-12-2009 को ग्वालियर आ रहा हूं लेकिन आपसे कैसे सम्पर्क करूं? मेरा मोबाइल न0 है----9456239706 अगर हो सके तो बता कल कर दें. आपसे मिलने की तीव्र इच्छा है.
प्रणाम सहित
संजीव गौतम

Pushpendra Singh "Pushp" ने कहा…

बेहतरी रचना के लिए
बहुत -२ आभार

श्रद्धा जैन ने कहा…

द्रौपदी ने केश तो खोले हैं पर सहमी हुई है ,
भीम में आक्रोश तो है किंतु बलशाली नहीं है !

ek ek shabad dil ko cheerta hua

Pushpendra Singh "Pushp" ने कहा…
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