घातों में कुछ नहीं मगर हाँ बातों में कुछ तो दम है !
अंधों को भी बेच दिया है मैंने सुरमा क्या कम है !!
तुम्हें भले संसार दिखाई पड़ता हो केवल सपना !
लेकिन मुझको तो लगता है जुल्फों में अब भी ख़म है !!
यूँ ही नहीं गँवाई हमने जान बेवजह पंडित जी !
खंज़र उसके हाथ सही पर आँख अभी उसकी नम है !!
जबसे कारा की खिड़की पर तूने ज़ुल्फ़ बिखेरी है !
तबसे सजा सुनाने वालों के चेहरों पर मातम है !!
अब तो इन जंजीरों को ही हमने पायल मान लिया !
लोहू तो रिसता रहता है , लेकिन पाँव छमाछम है !!
कारा -- जेल
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शनिवार, 20 फ़रवरी 2010
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16 टिप्पणियां:
अब तो इन जंजीरों को ही हमने पायल मान लिया !
लोहू तो रिसता रहता है , लेकिन पाँव छमाछम है !!
Poori rachana gazab hai...alfaaz nahi! Saathi anupam geyata liye hue!
घातों में कुछ नहीं मगर हाँ बातों में कुछ तो दम है !
अंधों को भी बेच दिया है मैंने सुरमा क्या कम है !!
बहुत खूब .. .बहुत अच्छी रचना ...
यूँ ही नहीं गँवाई हमने जान बेवजह पंडित जी !
खंज़र उसके हाथ सही पर आँख अभी उसकी नम है
वाह .. कमाल का शेर है ... पहला शेर भी बहुत कमाल का है .. सुभान अल्ला ...
क्या बात है त्रिवेदी जी! आप लिखते रहें तो हमारा आत्मविश्वास बढ़ता है।
दीपक भारतदीप
बहुत खूब ... उम्दा शेर ... बेहतरीन ग़ज़ल.
अब तो इन जंजीरों को ही हमने पायल मान लिया !
लोहू तो रिसता रहता है , लेकिन पाँव छमाछम है !!
बहुत सुन्दर लिखा है आपने,
शेरों में मिसरा ए सानी गजब ढा रहे है..
ललित जी आप की गजलें हमेशा उस्तादाना होती है आज ये गजल भी बहुत पसंद आयी खास कर हर शेर एक नए आयाम को प्रस्तुत कर रहा है
निवेदन है की गजल की बहर और रुक्न भी लिख दिया करे जिससे हम नए सीखने वालो को भी कुछ सीखने को मिले
बेहतरीन ग़ज़ल !
तुम्हें भले संसार दिखाई पड़ता हो केवल सपना !
लेकिन मुझको तो लगता है जुल्फों में अब भी ख़म है !!
kya baat hai !
बेहतरीन , लाजवाब , उम्दा ।
यूँ ही नहीं गँवाई हमने जान बेवजह पंडित जी !
खंज़र उसके हाथ सही पर आँख अभी उसकी नम है !!
अब तो इन जंजीरों को ही हमने पायल मान लिया !
लोहू तो रिसता रहता है , लेकिन पाँव छमाछम है !!
वाह वाह वाह ....क्या बात है...हर शेर सीधे घायल करने वाले हैं....लाजवाब रचना है ....लाजवाब !!!! आनंद आ गया पढ़कर...आपका बहुत बहुत आभार...
बहुर सुन्दर गजल
आभार
ललित जी आपका ईमेल पता चाहिए एक जरूरी मेल भेजनी है
venuskesari@gmail.com
बहुत दिनों बाद फिर एक नायाब ग़ज़ल ,बधाई हो .कहाँ हो आप आजकल ,कोई बात नहीं ,टिपण्णी नहीं ,बात क्या है /
लिखते रहिये /
सदर,
डॉ.भूपेन्द्र
Kya baat hai, bade dononse aapne naya kuchh likha nahi? Aapke geeton ka intezaar rahta hai!
सुन्दर रचना ।
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