रविवार, 19 सितंबर 2010

ग़ज़ल

दिया लेकर, भरी बरसात में, उस पार जाना है !
उधर पानी, इधर है आग, दौनों से निभाना है !!

करो कुछ बात गीली सी , ग़ज़ल छेड़ो पढो कविता !
किसी को याद करने का , बहुत अच्छा बहाना है !!

मेरा आईना भी मेरी, बहुत तारीफ करता है !
मुझे लगता है सोने से, इसे भी मुंह ढाना है !!

मुहब्बत की डगर सीधी , मगर दस्तूर उलटे है !
अगर चाहो इसे पाना ,तो फिर जी भर लुटाना है !!

ये मंज़र प्यार में तुमने , अभी देखे कहाँ होंगे !
लिपटना है घटा से , प्यास, शबनम से बुझाना है !!

मुखौटे तोड़ने भी हैं , भरम जिंदा भी रखना है !
यहाँ पर कुफ्र है पीना , , लाजिम डगमगाना है !!

ये आंसू भी तो स्वाँती, बूँद से कुछ कम नहीं मेरे !
संवर जाये तो मोती है , बिखर जाये फ़साना है !!

मेरी बेचारगी को माफ़ करना जहाँ वालो !
ये किस्सा है हसीनों का , मशीनों को सुनाना है !!

अभी तक तो नहीं पाई , किसी ने भी यहाँ मंजिल !
वफ़ा की राह में देखें , हमारा क्या ठिकाना है !!



© 2008 lalit mohan trivedi All Rights Reserved

21 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

मुखौटे तोड़ने भी हैं , भरम जिंदा भी रखना है !
यहाँ पर कुफ्र है पीना , औ, लाजिम डगमगाना है !!

ये आंसू भी तो स्वाँती, बूँद से कुछ कम नहीं मेरे !
संवर जाये तो मोती है , बिखर जाये फ़साना है !!

बहुत बढ़िया गज़ल ....खूबसूरत ..

राणा प्रताप सिंह (Rana Pratap Singh) ने कहा…

बहुत खूब| हर शेर मार्के का है..किसकी तारीफ की जाय और किसे छोड़ा जाय..बड़ी हिम्मत करके और बाकियों से माफ़ी मांगते हुए ये शेर सबसे ज्यादा पसंद आया|
मेरी बेचारगी को माफ़ करना ऐ जहाँ वालो !
ये किस्सा है हसीनों का , मशीनों को सुनाना है !!
ब्रह्माण्ड

shama ने कहा…

ये आंसू भी तो स्वाँती, बूँद से कुछ कम नहीं मेरे !
संवर जाये तो मोती है , बिखर जाये फ़साना है !!
Wah,wah,wah! Bahut dinon baad likha aapne lekin kya gazab ka likha hai! Behtareen gazal kahee!

kshama ने कहा…

दिया लेकर, भरी बरसात में, उस पार जाना है !
उधर पानी, इधर है आग, दौनों से निभाना है !!
Shuruaat kaa hee ye aalam hai to aage kya gazab hoga!
Ham to samajh baithe the ki aap blog ka raasta bhool gaye! Behad achha laga aapki gazal padhke!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

मुहब्बत की डगर सीधी , मगर दस्तूर उलटे है !
अगर चाहो इसे पाना ,तो फिर जी भर लुटाना है ..

बहुत ही लाजवाब शेरों के साथ .... कमाल की ग़ज़ल है .... सुभान अल्ला ....

शारदा अरोरा ने कहा…

शब्द और भाव पसंद आए ...

सदा ने कहा…

ये आंसू भी तो स्वाँती, बूँद से कुछ कम नहीं मेरे !
संवर जाये तो मोती है , बिखर जाये फ़साना है !!

गहरे भावों के साथ सुन्‍दर शब्‍द रचना ।

रंजना ने कहा…

मेरा आईना भी मेरी, बहुत तारीफ करता है !
मुझे लगता है सोने से, इसे भी मुंह मढाना है !!

क्या बात कही...वाह !!!!

सत्य है, चापलूसों के मुंह सोने से मढ़े ही जाते हैं....

बहुत बहुत बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल.....हर शेर मन मोहने वाला.....

संजीव गौतम ने कहा…

दिया लेकर, भरी बरसात में, उस पार जाना है !
उधर पानी, इधर है आग, दौनों से निभाना है !

मुखौटे तोड़ने भी हैं , भरम जिंदा भी रखना है !
यहाँ पर कुफ्र है पीना , औ, लाजिम डगमगाना है!!

बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है। मतले का तो कहना ही क्या। वाह!

संजीव गौतम ने कहा…

बड़े दा प्रणाम,
दूसरा ब्लाग बनाया है। पहले वाले का पासवर्ड भूल गया था।
कृपया आषीर्वाद दें और अपना मो0 न0 फिर से एस0एम0एस कर दें-9456239706पर
नये ब्लाग का यूआरएल है-
http://kabhi-to.blogspot.com

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

बहुत उम्दा गज़ल.

ज्योत्स्ना पाण्डेय ने कहा…

मुखौटे तोड़ने भी हैं , भरम जिंदा भी रखना है !
यहाँ पर कुफ्र है पीना , औ, लाजिम डगमगाना है !!

ये आंसू भी तो स्वाँती, बूँद से कुछ कम नहीं मेरे !
संवर जाये तो मोती है , बिखर जाये फ़साना है !!

मेरी बेचारगी को माफ़ करना ऐ जहाँ वालो !
ये किस्सा है हसीनों का , मशीनों को सुनाना है !!


bahut hi khoobsurat gazal...chand sher jo khaas pasand aaye...

shubhkamanaayen...

M VERMA ने कहा…

बहुत सुन्दर गज़ल

"अर्श" ने कहा…

आदाब ,
मुद्दतों बाद इधर से गुजरना हुआ तो सोंचा आपके यहाँ से होता चलूँ! खुबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकारें , मतले पर खास तौर से दाद कुबूल करें ! दुसरे शे'र ने तो जैसे अपने दिल की बात कह दी आपने , वाह तीसरे शे'र को कोई ताज़र्बाकर ही इस तरह से कह सकता था , पुरानी बात मगर जिस लहजे से आपने से मुकम्मल किया है इसकी खूबसूरती और बढ़ गई है ! बाकी के अश'आर भी पसंद आये ... मुलायम सी ग़ज़ल के लिए ढेरो बधाई आपको ...


आपका
अर्श

Smart Indian ने कहा…

बहुत खूबसूरत गज़ल| हर प्ंक्ति लाजवाब, विशेषकर विरोधाभास का सुन्दर प्रयोग, वाह!

रंजना ने कहा…

सोचा जो शेर सबसे अच्छे लगेंगे,उन्हें छांटकर टिपण्णी में टांक दूंगी...पर यहाँ तो सभी के सभी शेर ऐसे मन को बाँधने वाले हैं कि किसे चुनुं और किसे छोडूं..

बेहतरीन ग़ज़ल लिखी है आपने...
आनंद आ गया पढ़कर ....
बहुत बहुत आभार पढने का सुअवसर देने के लिए...

ममता त्रिपाठी ने कहा…

त्रिवेदी जी!
आपकी रचनाओं में अपूर्व व्यञ्जनात्मकता है, इसके साथ ही अपका उर्दू-ज्ञान भी काबिलेतारीफ़ है।

Akanksha Yadav ने कहा…

बहुत खूबसूरत गजल ...बधाई.


'सप्तरंगी प्रेम' के लिए आपकी प्रेम आधारित रचनाओं का स्वागत है.
hindi.literature@yahoo.com पर मेल कर सकते हैं.

Vinashaay sharma ने कहा…

वाह,बाह उम्दा इसके आगे क्या कहूं !

डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह ने कहा…

wah aha,ek aur gahrihazal puraney panno sey bahut maal baki hai abhi aap key khajaney mey.
kafi dino baad aaya hoo aaj aapkey dwar.
abhi nahi hua khatam khajana,
abhi to bahut purana sona hai bahar aana//
sasneh
bhoopendra
rewa

Madan Mohan Saxena ने कहा…

बहुत शानदार ग़ज़ल शानदार भावसंयोजन हर शेर बढ़िया है आपको बहुत बधाई

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